उत्पत्ति एवं विकास-- भाषा विज्ञान किसी भी भाषा का अध्ययन का मूल आधार होता है। उसके द्वारा लिखित एवं अलिखित साहित्य एवं असाहित्य प्रचारित एवं अप्रचालित देशी एवं अदेशी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय एक देशी एवं बहुदेशी तथा विकसित एवं अविकसित सभी प्रकार के भाषाओं का अध्ययन किया जाता है।
अतः इसकी उपयोगिता सर्वोपरि है, और प्रत्येक विकसित एवं विकासशील राष्ट्रीय उसके अध्ययन एवं अनुसरण में भिन्न देखा जाता है। क्योंकि भाषा विज्ञान से ही यह पता चलता है कि,
भाषा के संबंध भाषा क्या है।
* उस के कौन-कौन से अंग होते हैं।*भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई।
* क्या भाषा परंपरागत वस्तु है, या अर्जित वस्तु है।
* भाषा के कौन-कौन से परिवार हैं।
* भाषा का सांस्कृतिक महत्व क्या है।
* किसी भी भाषा परिवार की मूल भाषा कौन सी है।
* क्या सभी भाषा एक ही स्रोत से विकसित हुई है। या उनके स्रोत अलग-अलग है।
* कोई भी भाषा कैसे विकसित हुई।
* कैसे अविकसित अवस्था में ही रह जाती है।
* भाषा की जीवन शक्ति कौन-कौन सी है।
* विभिन्न भाषा में भिन्न-भिन्न प्रणालियों से कैसे भाव प्रकाशन की एवं उसकी शक्ति ग्रहण की है।
* परस्पर संबंध भाषाएं कलांतर मैं कैसे पूर्णतया भिन्न एवं अलग हो जाती है।
* किस प्रकार भाषाएं विकसित होकर नए-नए रूप ग्रहण किया जाता है।
इस प्रकार भाषा संबंधित जिज्ञासा कि तृप्ति भाषा विज्ञान के द्वारा ही होता है।
ध्वनि के संबंध-- भाषा विज्ञान केवल भाषाओं के संपूर्ण ज्ञान के ही मूल आधार में ही है। अपितु भाषा के विभिन्न ध्वनियों के अनुसरण के भी सुविधाए प्रदान करता है। भाषा विज्ञान ही यथार्थ रूप में यह समझता है, कि
* भाषा की कौन कौन सी ध्वनियां होती है।* कौन-कौन सी प्रचलित ध्वनियां है।
* कौन-कौन सी अगत (आया हुआ) ध्वनियां है।
* भाषा विज्ञान ही देशी एवं अदेशी ध्वनि के भेद को स्पष्ट करता है।
* ध्वनियों के परिवर्तन की दिशाएं समझाता है।
* ध्वनि परिवर्तन के कारणों का ज्ञान कराता है।
* विभिन्न ध्वनि नियमों की जानकारी कैसे प्रदान करता है।
* एक ध्वनि से दूसरे ध्वनि में कैसे और क्यों भेद उत्पन्न हो जाता है।
* ध्वनियों के उच्चारण में क्यों भिन्नताएं आ जाती है।
* भिन्न भिन्न कालों में किस तरह ध्वनियों के उच्चारण परिवर्तन हो जाते हैं।
* किस तरह अनेक ध्वनियां लुप्त हो जाते हैं।
भाषा विज्ञान ही यह बता सकता है, किस तरह "ष" ध्वनि कहीं "ष" और कहीं "क" की तरह बोली जाती है। जिसके परिणाम स्वरूप बरसा शब्द कहीं बरखा या वर्षा हो जाता है। ऐसा ही किस तरह "र" का ही "री" कहीं "रू" की तरह बोली जाती है। जिसे वृक्ष शब्द का रूपातरण कहीं तो वृरक्ष हुआ है। कहीं रूख हो जाता है। इस तरह ध्वनि संबंधित विभिन्न समस्या का समाधान एक मात्रा भाषा विज्ञान के द्वारा ही हो सकता है।
शब्द का संबंध-- भाषा विज्ञान के द्वारा ही शब्दों का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है, क्योंकि भाषा विज्ञान ही यह समझाता है ।
* शब्दों का विकास कैसे होता है ।* कैसे शब्द तद्भव रूप को ग्रहण करते हैं।
* किस तरह शब्द में भिन्न-भिन्न रूपांतरण होते हैं।
* किस प्रकार एक भाषा के शब्द दूसरे भाषा में अपने आकार-प्रकार को बदल डालते हैं।
* स्थान भेद से कैसे शब्दों में रूपांतरण हो जाता है
* उच्चारण भेद से किस प्रकार शब्दों के रूप कुछ के कुछ हो जाता है ।
* किस तरह शब्द कहीं अनुकरण के आधार पर तथा कहीं अन्य किसी प्रणाली से गड़ लिया जाता है।
* भाषा विज्ञान है या समझाता है कि किस तरह से उपाध्याय शब्द घिरते- घिरते हो गया।
* किस तरह प्राय: ग्रंथि का पलाती या गलटि बन गया है।
* कैसे हिश्र शब्द का परिवर्तन होकर सिंह बन गया है।
* किस तरह बनजी का बंदर जी हो जाता है।
* किस तरह एक ही भद्र शब्द विकसित होकर भद्रा और भला शब्द आपस में कितने पृथक हो गए हैं।
इसी तरह शब्दों की राह को भाषा विज्ञान से ही प्राप्त करते हैं। और इसी से उनकी विकास धारा परिवर्तन आदि का संपूर्ण बोध होता है।
अर्थो के संबंध-- भाषा विज्ञान से ही शब्दों, विभिन्न अर्थों का बोध होता है, क्योंकि भाषा विज्ञान ही यह समझाता है कि किस तरह पीढ़ी परिवर्तन के साथ-साथ किसी शब्द के अर्थ में परिवर्तन हो जाते हैं। कैसे वातावरण के कारण एक ही शब्द विभिन्न अर्थों का ध्वातक हो जाता है।
* कैसे शब्दों का अर्थ में विस्तार होता है।
* कैसे संकोच होता है।
* कैसे अर्थ कुछ के कुछ बदल जाते हैं।
* किस तरह कई तरह के अर्थ में उठकर सो जाता है। अतः कहीं उपकार्ष हो जाता है।
* कैसे भाषा विज्ञान ही यह समझाता है कि किस तरह महाराज शब्द रसोइ का वाचक होकर उपकार्ष की ओर गया है।
* किस तरह सहास शब्द दिम्मत का बोध होकर उतकार्ष की ओर बढ़ा है।
* किस प्रकार भाषाविज्ञान ही समझाता है कि अनेक शब्द को देखने में तो एक ही अर्थ के वचक प्रतीत होते हैं किंतु वे बड़ा भेद होता है। और वे प्रायवाची होकर भी अलग-अलग अर्थ के वादक होते हैं।
जैसे-- हकीम, वेद, डॉक्टर ,कबिराज आदि शब्द चिकित्सा के वाचक हैं। परंतु इन्हीं परस्पर भेंद होता है। ऐसा ही स्कूल, मदरसा, पाठशाला, कॉलेज,विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, आदि शब्द शिक्षा संस्था के धोतक हैं। किंतु इन में परस्पर अंतर होता है।
अतः भाषा विज्ञान शब्दार्थ परिवर्तन दिशाएं एवं उनकी कारणों को संपूर्ण बोध कराने के कारण अत्यंत उपयुक्त होता है।
उपयोग-- भाषा विज्ञान ना केवल भाषाओं का अध्ययन में ही उपयोगी है, बल्कि साहित्य के अध्ययन में भी अत्यंत उपयोगी होता है। क्योंकि साहित्य में प्रयुक्त विभिन्न भाषाओं का निर्माण एवं संरक्षण का संपूर्ण ज्ञान भाषा विज्ञान के द्वारा ही प्राप्त होता है। और भाषा विज्ञान ही यह बताता है, कि किस तरह कोई बोली धीरे-धीरे विभाषा का रूप ग्रहण करती है। कैसे वह लोक भाषा का रूप ग्रहण करते हुए साहित्य रचना एवं लोक व्यवहार में प्रयुक्त होता है। किस तरह वह प्रतिनिष्ठ भाषा बनकर उच्च स्तरीय साहित्य की निर्माण में काम आने लगती है। भाषा विज्ञान ही साहित्य की अभिव्यक्ति सांर्धय एवं अभिव्यंजन कौशल को समझाने में सहायता पहुंचाता है। तथा भाषा विज्ञान से ही यह ज्ञात होता है। कि किस प्रकार कोई भाषा विभिन्न शब्द रूपों को ग्रहण करती हुई साहित्य की तीव्र अनुभूति को प्रकट करने में सहमत करने में होती है। और किस तरह उसमें साहित्य के मरमीक भाव को अभिव्यक्त करने वाले शब्द निर्माण एवं चयन किया जाता है।
प्रगति -- भाषा विज्ञान पौराऐतिहासिक खोज अन्वेक्षणों के भी अत्यंत उपयोगी होता है। क्योंकि भाषा विज्ञान के द्वारा भाषाओं के मूल उद्गम और मूल स्रोत का पता लगाते लगाते उन भाषा भाषियों के अंतर्गत रहन सहन रीति- रिवाज खान-पान बौद्धिक विकास, राजनीतिक उपलब्धि,धार्मिक विश्वास आदि का ज्ञान भी बलि प्रकार हो सकता है। यह भाषा विज्ञान की ही देन है, बल्कि विद्वानों ने आर्य भाषा के उद्गम का अन्वेषण ( खोज ) करते-करते आर्यों के आदि स्थान, उनके मूल निवास, उनके मूल भाषा, उनके रहन सहन,उनकी रीति रिवाज, उनके धार्मिक विश्वास, उनके खान-पान आदि का भी यथेष्ट ज्ञात प्राप्त किया है। इतना ही नहीं भाषा विज्ञान के द्वारा ही प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के उद्गम तथा विकास का सहीं ज्ञान उपलब्ध हो सकता है, और इसी से मानव जाति के क्रमिक विकास का बोध बलि प्रकार हो सकता है। क्योंकि भाषा विज्ञान ही हमें यह समझाता है कि कौन-सी संस्कृति विश्व भर में सबसे अधिक प्राचीन है। और कौन सी सभ्यता संसार में कब सें विकसित हुई है।
शुद्धता -- किसी भी भाषा की शुध्दता और उनका प्रयोग की अशुध्ता का यथेष्ट ज्ञान भी भाषा विज्ञान के द्वारा ही प्राप्त होता है। क्योंकि भाषा विज्ञान ही हमें यह समझता है कि किस तरह भाषाओं के शब्दों में कहें की वर्णन विपराय हो जाता है। कहीं स्वर एवं व्यंजन का अगमन हो जाता है। तथा कहीं स्वर एवं व्यंजन का लोप हो जाता है। कहीं ब्रह्मक व्यउत्पत्ति द्वारा शब्दों को नमीन रूप में डाल लिया जाता है। जिसमें कभी-कभी भाषा में अशुद्ध शब्द प्रचलित हो जाता है। और बहुत कुछ प्रयास करने पर भी उसे जनसाधारण के मस्तिष्क से नहीं निकाला जा सकता है।
उदाहरण : उपरोक्त चिह्न राष्ट्रीय कुल्फी शब्दों को ले सकते हैं। जिसके शुद्ध रूप क्रमशः उपयुक्त चिह्न राष्ट्रीय कुपाली आदि शब्द में लोग व्यवहार में अशुद्ध शब्दों को बोलने एवं लिखने में लोगों को संकोच होता है। ऐसे ही गांधी कैंप टोपी गुल रोगन का तेल सनलाइट शॉप साबुन आदि ऐसे ही अशुद्ध प्रचलित हैं। जिनका व्यवहार लोगों में देखा जाता है। यही बात कम्यू मतबल नखलऊ, नौरगाबाद आदि शब्दों के उच्चरणों में देखा जाती है। कि इन सभी अशुद्धियों और अशुद्धि -प्रयोग की यथेष्ट जानकारी भाषा विज्ञान से ही हो सकती है।
[8] भाषा विज्ञान के अध्ययन में मानव जीवन में पर्याप्त परिवर्तन हो सकता है। क्योंकि विश्वभर की भाषाओं की पारंपरिक संबंध एवं अनेक उद्भव एवं विकास के ज्ञान से मानव को संक्रिय एंव संकुचित दृष्टिकोण में पर्याप्त अंतर आ सकता है। उनकी दृष्टि विशाल बन सकती है। और उनके हृदय में उदारता एवं विशालता जागरूकता हो सकती है। और वे विश्व बंधुत्व के भावना से ओतप्रोत हो सकते हैं। इतना ही नहीं भाषाविज्ञान अत्यंत उपयोगी होता है। क्योंकि भाषा विज्ञान हिंदी उर्दू सर्कष का समाधान कर सकता है। और भाषा विज्ञान ही यह समझाता है, कि हिंदी का आगे-आगे विकास किस प्रकार भारत के अन्य प्रर्याप्त भाषाओं की विकास में बाधा नहीं डाल सकता। साथ ही भाषा विज्ञान अन्य भाषा भाषियों के साथ मिलकर संपर्क स्थापित करने में अत्यंत सहायक होता है। क्योंकि यह भाषा विज्ञान की कृपा है, कि संस्कृत लैटिन ग्रीक जर्मन आदि भाषाओं में समानता देखकर यूरोपीय परिवार कि स्थापना की गई है। और भारत से लेकर यूरोप तक आत्मीय निकटता एवं समानता का प्रचार किया गया है।
[9] भाषा विज्ञान आधुनिक संचार साधनों के लिए भी अत्यंत उपयोगी होता है। क्योंकि भाषा विज्ञान के द्वारा ही उन ध्वनि संकेतों का निर्माण सुगमता एवम् सरलता के साथ किया जा सकता है। जिनका उपयोग दूरसंचार (टेलीकॉम) के लिए होता है। तथा भाषा विज्ञान ही उन सांकेतिक शब्दावली का निर्माण करने में सहायक होता है। जिन यांत्रिक अनुमान सरलता से किया जा सकता है। इतना ही नहीं परिभाषिक शब्दावली एवं तकनीकी शब्दों का निर्माण में भी भाषा विज्ञान की उपयोगी सर्वोपरि है।
[10] भाषा विज्ञान का उपयोगी अब वाणी की चिकित्सा के लिए भी होने लगा है। क्योंकि बहुत से व्यक्ति संसार में ऐसे हैं जो हकलाते जो तोथलाते हैं अथवा शब्दों को सही उच्चारण नहीं कर पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को तुतलाने और हकलाने की संपूर्ण जानकारी भाषा विज्ञान के द्वारा सुगमता से हो सकती है। क्योंकि भाषा विज्ञान में ध्वनि यंत्र का संपूर्ण अध्ययन कराया जाता है। और यह भी समझाया जाता है कि स्थान से कौन सी ध्वनि का उच्चारण होता है। तथा उन ध्वनि के उच्चारण में किस-किस अवयवों का कितना कितना सहयोग होता है। अतः एक ध्वनि यंत्र की कमियों को जानकर उनकी चिकित्सा सुगमता से हो सकता है। इसलिए वाणी की चिकित्सा के लिए भाषा विज्ञान की उपयोगिता को स्वीकार कर लिया गया है।
उदाहरण : उपरोक्त चिह्न राष्ट्रीय कुल्फी शब्दों को ले सकते हैं। जिसके शुद्ध रूप क्रमशः उपयुक्त चिह्न राष्ट्रीय कुपाली आदि शब्द में लोग व्यवहार में अशुद्ध शब्दों को बोलने एवं लिखने में लोगों को संकोच होता है। ऐसे ही गांधी कैंप टोपी गुल रोगन का तेल सनलाइट शॉप साबुन आदि ऐसे ही अशुद्ध प्रचलित हैं। जिनका व्यवहार लोगों में देखा जाता है। यही बात कम्यू मतबल नखलऊ, नौरगाबाद आदि शब्दों के उच्चरणों में देखा जाती है। कि इन सभी अशुद्धियों और अशुद्धि -प्रयोग की यथेष्ट जानकारी भाषा विज्ञान से ही हो सकती है।
[8] भाषा विज्ञान के अध्ययन में मानव जीवन में पर्याप्त परिवर्तन हो सकता है। क्योंकि विश्वभर की भाषाओं की पारंपरिक संबंध एवं अनेक उद्भव एवं विकास के ज्ञान से मानव को संक्रिय एंव संकुचित दृष्टिकोण में पर्याप्त अंतर आ सकता है। उनकी दृष्टि विशाल बन सकती है। और उनके हृदय में उदारता एवं विशालता जागरूकता हो सकती है। और वे विश्व बंधुत्व के भावना से ओतप्रोत हो सकते हैं। इतना ही नहीं भाषाविज्ञान अत्यंत उपयोगी होता है। क्योंकि भाषा विज्ञान हिंदी उर्दू सर्कष का समाधान कर सकता है। और भाषा विज्ञान ही यह समझाता है, कि हिंदी का आगे-आगे विकास किस प्रकार भारत के अन्य प्रर्याप्त भाषाओं की विकास में बाधा नहीं डाल सकता। साथ ही भाषा विज्ञान अन्य भाषा भाषियों के साथ मिलकर संपर्क स्थापित करने में अत्यंत सहायक होता है। क्योंकि यह भाषा विज्ञान की कृपा है, कि संस्कृत लैटिन ग्रीक जर्मन आदि भाषाओं में समानता देखकर यूरोपीय परिवार कि स्थापना की गई है। और भारत से लेकर यूरोप तक आत्मीय निकटता एवं समानता का प्रचार किया गया है।
[9] भाषा विज्ञान आधुनिक संचार साधनों के लिए भी अत्यंत उपयोगी होता है। क्योंकि भाषा विज्ञान के द्वारा ही उन ध्वनि संकेतों का निर्माण सुगमता एवम् सरलता के साथ किया जा सकता है। जिनका उपयोग दूरसंचार (टेलीकॉम) के लिए होता है। तथा भाषा विज्ञान ही उन सांकेतिक शब्दावली का निर्माण करने में सहायक होता है। जिन यांत्रिक अनुमान सरलता से किया जा सकता है। इतना ही नहीं परिभाषिक शब्दावली एवं तकनीकी शब्दों का निर्माण में भी भाषा विज्ञान की उपयोगी सर्वोपरि है।
[10] भाषा विज्ञान का उपयोगी अब वाणी की चिकित्सा के लिए भी होने लगा है। क्योंकि बहुत से व्यक्ति संसार में ऐसे हैं जो हकलाते जो तोथलाते हैं अथवा शब्दों को सही उच्चारण नहीं कर पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को तुतलाने और हकलाने की संपूर्ण जानकारी भाषा विज्ञान के द्वारा सुगमता से हो सकती है। क्योंकि भाषा विज्ञान में ध्वनि यंत्र का संपूर्ण अध्ययन कराया जाता है। और यह भी समझाया जाता है कि स्थान से कौन सी ध्वनि का उच्चारण होता है। तथा उन ध्वनि के उच्चारण में किस-किस अवयवों का कितना कितना सहयोग होता है। अतः एक ध्वनि यंत्र की कमियों को जानकर उनकी चिकित्सा सुगमता से हो सकता है। इसलिए वाणी की चिकित्सा के लिए भाषा विज्ञान की उपयोगिता को स्वीकार कर लिया गया है।
Thank you
ReplyDeleteCorrectly written.
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