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Showing posts from February, 2018

भाषा विज्ञान का अन्य विज्ञान से संबंध

भाषा विज्ञान में भाषा या भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। और भाषा जीवन का प्रमुख अंग है। क्योंकि भाषा के बिना जीवन और जगत का कोई भी कार्य नहीं हो सकता है। भाषा मानव जीवन की समस्त गतिविधियों की मूल आधार होती है। भाषा से ही हम परस्पर एक दूसरे के विचारों से अवगत होते हैं। अपनी इच्छा वह अभिलाषा व्यक्त करते हैं। और लोग व्यवहार में प्रभावित होते हैं। तथा दूसरों को प्रभावित करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। भाषा ही हमें ज्ञान विज्ञान के अनुसंधानों में सहायता प्रदान करती है। और भाषा से हम प्रगति के पथ पर अग्रसर होकर प्रकृति के विविध रहस्य का उद्घाटन करने में सहमत होते हैं। जब भाषा हमारे जीवन जगत ज्ञान विज्ञान आदि के सभी क्षेत्रों में अपना अधिकार रखती है। तब भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले भाषा विज्ञान का समान्य ज्ञान विज्ञान कि अन्य शाखा एंव परशाखाओं के प्रतिपादक  विविध शास्त्रों से होना स्वाभाविक है। वैसे भी भाषा ज्ञान विज्ञान की सभी शाखाओं से सहायता प्राप्त करके अपने क्षेत्रों मे परमपरि होता है। और विविध शास्त्रों से उपयोगी सामग्री लेकर भाषा की वैज्ञानिक व्याख्या करता है। इसके अ

भाषा विज्ञान की उपयोगिता एवं लाभ

उत्पत्ति एवं विकास-- भाषा विज्ञान किसी भी भाषा का अध्ययन का मूल आधार होता है। उसके द्वारा लिखित एवं अलिखित साहित्य एवं असाहित्य प्रचारित एवं अप्रचालित देशी एवं अदेशी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय एक देशी एवं बहुदेशी तथा विकसित एवं अविकसित सभी प्रकार के भाषाओं का अध्ययन किया जाता है।         अतः इसकी उपयोगिता सर्वोपरि है, और प्रत्येक विकसित एवं विकासशील राष्ट्रीय उसके अध्ययन एवं अनुसरण में भिन्न देखा जाता है। क्योंकि भाषा विज्ञान से ही यह पता चलता है कि, भाषा के संबंध भाषा क्या है। * उस के कौन-कौन से अंग होते हैं। *भाषा की उत्पत्ति कैसे हुई। * क्या भाषा परंपरागत वस्तु है, या अर्जित वस्तु है। * भाषा के कौन-कौन से परिवार हैं। * भाषा का सांस्कृतिक महत्व क्या है। * किसी भी भाषा परिवार की मूल भाषा कौन सी है। * क्या सभी भाषा एक ही स्रोत से विकसित हुई है। या उनके स्रोत अलग-अलग है। * कोई भी भाषा कैसे विकसित हुई। * कैसे अविकसित अवस्था में ही रह जाती है। * भाषा की जीवन शक्ति कौन-कौन सी है। * विभिन्न भाषा में भिन्न-भिन्न प्रणालियों से कैसे भाव प्रकाशन की एवं उसकी शक्ति ग्रहण की ह

जाति विज्ञान का अन्य विषयों के साथ संबंध

(1) शारीरिक मनोविज्ञान-- संसार के मानव पक्ष जाति विज्ञान विशेष के शारीरिक गुणों का अध्ययन कर लेना पड़ता है और जिस दृष्टि में हम उसका अध्ययन करते हैं उसे ही शारीरिक मनोविज्ञान कहते हैं। (2) संस्कृतिक मानवविज्ञान-- किसी जाति के मानव समुदाय को जानने के लिए संस्कृतिक मानव विज्ञान का अध्ययन जरूरी है। (3) समाजशास्त्र-- किसी जमाने में समाजशास्त्र तथा मानव शास्त्र संयुक्त था विस्तृत सामाजिक समस्याओं पर जोर देता था यदि किसी भी विषय पर परिवार के संदर्भ आदि जाति विज्ञान को अध्ययन करना हो तो वह सिद्धांतिक पक्ष के लिए जाति विज्ञान समाजशास्त्र के साथ जाता है किन्तु इनके केंद्र बिन्दु पर जाने के लिए जाति विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। इसके बिना असंभव है इसीलिए डॉक्टर नदीम हुसैन भी इसके प्रवर्तक है क्योंकि उन्होंने माना है, जाति विज्ञान और मानव शास्त्र एक दूसरे के पूरक है। (4) मानव शास्त्र एवं भूगोल-- भूगोल और जाति विज्ञान में संबंध बहुत ही गहरा है। इस प्रकार जाति विज्ञान को जानने के लिए भूगोल उसकी भौगोलिक क्षेत्र तथा स्थान को जानना जरूरी है क्योंकि भौगोलिक दृष्टिकोण से मानव जाति का अध्ययन किया ज