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Showing posts from February, 2017

निबंध के प्रकार

निबन्ध के प्रकार- निबन्ध के तीन प्रकार है। भावात्मक, विचारात्मक , वर्णनात्मक। भावात्मक- भावात्मक निबंध में भाव की प्रधानता होती है। और विचारात्मक निबंध में विचार की, यहां प्रधानता शब्द ध्यान देने योग्य है।कोई भी निबंधकार केवल भाव या विचार के सहारे नहीं चलता, वह अपने साथ भाव और विचार दोनों को लेकर चलता है। पर उसमें कवि भाव पक्ष की प्रधानता रहती है। और कवि विचार पक्ष में भाव पक्ष की प्रधानता रहने पर भावात्मक निबंध की रचना होती है।और विचार पक्ष की प्रधानता रहने पर विचारात्मक निबंध की, कहने का तात्पर्य यह है की ना तो भावात्मक निबंध में बुद्धि की सर्वथा उपेक्षा रहती है। और ना विचारात्मक निबंध में ह्रदय की, विचारात्मक निबंधों में निबंधकार ऐतिहासिक या वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विश्लेषण करता है। पर ऐतिहासिक या वैज्ञानिक की तरह वह विषय से शतर्क नहीं रहता बल्कि विषय के साथ अपने आप को एकाकार कर देता है। विचारात्मक निबंध में का आधार चिंतन है निबंधकार अपने चिंतन के माध्यम से अपनी बात पाठकों तक पहुंचाता है। अपने बुद्धि से पाठकों की बुद्धि को आत्मीयता स्थापित करना इसका उद्देश्य रहता है। निबन्ध की शैली

नाटक क्या है। परिभाषा

नाटक- भारत में नाटक साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसकी लम्बी परम्परा पाई जाती है। भारत में ही नाट्यशस्त्र की रचना सबसे पहले हुई थी। यहाँ नाट्यशस्त्र की अनेक आचार्य हुऐ, जिन्होंने नाटक पर बड़े विस्तार और गमभीरता से इस विधा पर विचार किया है। इन में भरत, धनंजय, रामचन्द्र, गुणचन्द्र, अभिनाव गुप्त, विश्वनाथ आदि के नाम अधिक प्रसिद्ध है। नाटक की परिभाषा- आचार्य धनंजय ने नाटक की परिभाषा इस प्रकार बताई है- अवस्था की अनुकृति नाटक है, यह परिभाषा सातर्क है, व्यवारिक और उपयोगी है। नाटक अनुकरण तत्व की प्रधानता है, साहित्य की सभी विधाओं में नाटक की वह विधा है, जिसमे अनुकरण पर सार्वधिक बल दिया गया है। लेकिन यहाँ सवाल उठता है। अनुकरण किसका हो, इसका उत्तर है, कार्ज तथा मनवीए जीवन के क्रियाशील कार्जो का मनुष्य अनेक परिस्थितियों से हर क्षण गुजरता है। उनकी भिन्न -भिन्न आवस्थाएँ होती है। भिन्न भिन्न अवस्थाओं में रहने के कारण उनके जीवन रंगमंच पर अनेक दृश्य अनेक स्थितियाँ आते जाते रहते है। नाटककार नाटक की रचना करते समय इन्हीं स्थितियों का अनुकरण करता है। नाटक का स्वरूप- नाटक में जीवन का यथार्कमूल्य अनुकरण होते

जीवनी की परिभाषा, स्वरूप

जीवनी की परिभाषा- किसी विशिष्ट व्यक्ति के जीवन वृतान्त को जीवनी कहते है। विशिष्ट व्यक्तित्व के सभी लोग नहीं होते है, समाज और देश के कुछ चुने हुऐ लोग ही विशिष्ट होते है। उनकी यह विशिषता उनके विशेष कार्यो पर निर्भर करती है। ऐसे ही विशिष्ट पुरूषों की जीवनी लिखी जाती है। स्वरूप- हिन्दी में जीवनी को जीवन चरित्र और जीवन चरित्र भी कहते है। वैसे ही दोनों में कोई काश अत्तर नहीं है, फिर भी विशिष्ट अर्थ में दोनों मे अंत्तर किया जाता है। जीवनी में जीवन की अस्तूर घटनाओं का और जीवन चरित्र मे नायक के आन्तरिक गुणों का समावेश किया जाता है। सच तो यह है की जीवनी में किसी चरित्र नायक के अंत्तर और बह्य बहरी दोनो प्रकार की जीवन गद्य घटनाओं और गुणो का लेखा- जोखा प्रस्तुत किया जाता है। जीवनी में नायक के संम्पूर्ण जीवन के विशिष्ट क्रियाकलापों की विशेषता रहती है। जीवनी ना तो इतिहास है, ना ही कल्पनिक कथा यह किसी भी पुरूष की आर्दश कार्जो को प्रस्तुत करती है। यह उपन्यास भी नही है, जीवनी लिखने का मुख्य उद्देश्य होता है। की विशिष्ट मनुष्यों को व्यक्ति के रूप में देखा और परखा जाए। क्योकि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अपन

कहानी क्या है। एवं इनके तत्व

कहानी- साहित्य की सभी विधाओं में कहानी सबसे पुरानी विधा है, जनजीवन में यह सबसे अधिक लोकप्रिय है। प्राचीन कालों मे कहानियों को कथा, आख्यायिका, गल्प आदि कहा जाता है। आधुनिक काल मे कहानी ही अधिक प्रचलित है। साहित्य में यह अब अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है। पहले कहानी का उद्देश्य उपदेश देना और मनोरंजन करना माना जाता है। आज इसका लक्ष्य मानव- जीवन की विभिन्न समस्याओं और संवेदनाओं को व्यक्त करना है। यही कारण है कि प्रचीन कथा से आधुनिक हिन्दी कहानी बिल्कुल भिन्न हो गई उसकी आत्मा बदली है और शैली भी। कहानी के तत्व- मुख्यतः कहानी के छ तत्व माने गये है। [1] कथावस्तु [2] चरित्र-चित्रण [3] संवाद [4] देशकाल या वातावरण [5] उद्देश्य [6] शैली [1] कथावस्तु- कथावस्तु के बिना कहानी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह उसका अनिवार्य अंग है । कथावस्तु जीवन की भिन्न- मिन्न दिशाओं और क्षेत्रों से ग्रहण की जाती है । इसके विभिन्न स्रोत है, पुराण, इतिहास, राजनीतिक, समाज आदि। कहानीकार इनमे से किसी भी क्षेत्र से कथावस्तु का चुनाव करना है और उसके आधार पर कथानक की अट्टालिका खड़ी करता है। कथावस्तु में घटनाओं की अधिकत

उपन्यास

उपन्यास- उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दिर्ग कथा का वर्णन गद्द में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः इसका यह नाम सर्वथा उचित है, किंतु वे भूल गए हैं। साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भाति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्ता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी के novel अर्थ में प्रयुक्त होता है। जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्द रचना है। वह वृथक आकर का वृतांत जिसके अंतर्गत वास्तविक जीवन के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले पात्रो और कार्यों का चित्रण किया जाता हैं। उपन्यास के तत्व -पश्चात विद्वानों ने उपन्यास के मुख्यता छ तत्व निर्धारित किए गए