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जाति विज्ञान का अन्य विषयों के साथ संबंध

(1) शारीरिक मनोविज्ञान-- संसार के मानव पक्ष जाति विज्ञान विशेष के शारीरिक गुणों का अध्ययन कर लेना पड़ता है और जिस दृष्टि में हम उसका अध्ययन करते हैं उसे ही शारीरिक मनोविज्ञान कहते हैं।
(2) संस्कृतिक मानवविज्ञान-- किसी जाति के मानव समुदाय को जानने के लिए संस्कृतिक मानव विज्ञान का अध्ययन जरूरी है।
(3) समाजशास्त्र-- किसी जमाने में समाजशास्त्र तथा मानव शास्त्र संयुक्त था विस्तृत सामाजिक समस्याओं पर जोर देता था यदि किसी भी विषय पर परिवार के संदर्भ आदि जाति विज्ञान को अध्ययन करना हो तो वह सिद्धांतिक पक्ष के लिए जाति विज्ञान समाजशास्त्र के साथ जाता है किन्तु इनके केंद्र बिन्दु पर जाने के लिए जाति विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। इसके बिना असंभव है इसीलिए डॉक्टर नदीम हुसैन भी इसके प्रवर्तक है क्योंकि उन्होंने माना है, जाति विज्ञान और मानव शास्त्र एक दूसरे के पूरक है।
(4) मानव शास्त्र एवं भूगोल-- भूगोल और जाति विज्ञान में संबंध बहुत ही गहरा है। इस प्रकार जाति विज्ञान को जानने के लिए भूगोल उसकी भौगोलिक क्षेत्र तथा स्थान को जानना जरूरी है क्योंकि भौगोलिक दृष्टिकोण से मानव जाति का अध्ययन किया जाता है।
(5) इतिहास--- जाति विज्ञान किसी भी जाति के संदर्भ में अध्ययन करती है उदाहरण के लिए जो भी जनजातीय हैं अपना कोई इतिहास नहीं है। उनके इतिहास को खोजने के लिए मानव इतिहास को खोजना पड़ेगा एक जाति का इतिहास लिखना जाति विज्ञान इतिहास की विधि है।
(6) औषधिशास्त्र-- जाति विज्ञान और औषधि शास्त्र में घनिष्ठ संबंध है, यह संबंध हम निम्न स्वरूप या निम्न रूपों से रेंखाकित किया जा सकता है।
(क) जनजातीय समुदाय आज भी जड़ी बूटी के मामले में धनी है। और इसका अध्ययन जातीय औषधि के अंतर्गत की जाती है।
(ख) औषधि शास्त्र असहाय रोगों के इलाज हेतु प्रयासरत रहता है।
(ग) औषधि शास्त्र जाति विज्ञान के अध्ययन के सामग्री के माध्य से उन औषधि लोगों का दल खोजने में प्रयासरत रहता है। झारखंड क्षेत्र के  कई जनजाति या जाति औषधि शास्त्री हैं। जैसे- खड़िया,सभर इत्यादि।

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