यह कल्पना द्वारा पूर्ण होता है पर मानव कल्पना जीवन एवं जगत के अनुभव से प्राप्त करता है और वह अनुभव समाज से प्राप्त होता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और वह समाज से हर पल नए-नए अनुभव प्राप्त करता है एवं प्रत्येक अनुभवों को कल्पना के माध्यम द्वारा मनुष्य अपने कला को सृजित करता है इसी कारण प्रसिद्ध ग्रीस आचार्य एरिस टोटल ने साहित्य को जीवन एवं जगत का अनुकरण मानते थे। उनके मतानुसार साहित्य जीवन एवं जगत का नकल है। जीवन एवं जगत में हो रहे घटनाओं को साहित्यकार अपने कला से नकल करता है एवं फिर से उसी समाज को लौटा देता है। साहित्यकार जिस समाज एवं वातावरण में रहते हैं उस समाज एवं वातावरण की सभी स्थितियाँ उसे हमेशा प्रभावित करते रहता है। साहित्य संस्कृत के सहित शब्द से बना है। साहित्य की उत्पत्ति को संस्कृत साहित्य के आचार्यों ने हितेन सह सहित तस्य भव: की संज्ञा दिए हैं किसका अर्थ है कल्याणकारी भाव। साहित्य में जीवन एवं जगत का कल्याण होना अनिवार्य है क्योंकि इसमें सहित की भाव होती है, जो लोक जीवन के कल्याणकारी भाव को सम्पादन करता हैं। साहित्य के हर क्षेत्र में शब्द एवं अर्थ के योग के ...